बने रहो पगला, डरा रहे अगला 

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बने रहो पगला, डरा रहे अगला 

पिछले लगभग तीस वर्षों से पाकिस्तान पागल होने का नाटक कर रहा है: कोई कुछ करेगा तो हम परमाणु हमला कर देंगे. पाकिस्तान की रणनीति पाकिस्तान द्वारा किसी भी पारंपरिक हमले के खिलाफ परमाणु हथियारों के पहले उपयोग पर आधारित है, खासकर भारत से, क्योंकि भारत ने नो फर्स्टयूज़ की नीति अपनाई हुई है. पिछले तीन दशकों में असंख्य बार, पाकिस्तानी जनरलों और राजनेताओं ने भारत के खिलाफ परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी दी. पाकिस्तान ने दुनिया को कन्विंस कर दिया था कि वे परमाणु हथियारों को युद्ध का हथियार समझते हैं न कि डेटरेन्स. इसके साथ ही पकिस्तान ने यह भी इम्प्रैशन बनाया कि वह एक गैर-जिम्मेद्दार नेतृत्व वाला देश है और छोटे मोटे उकसावे पर भी परमाणु हमला कर सकता है.

नो फर्स्ट यूज़ का मतलब है कि परमाणु शक्तिसंपन्न देश परमाणु हथियारों का उपयोग तबतक नहीं करेंगे जबतक पहले परमाणु हथियारों का उपयोग करके किसी विरोधी द्वारा हमला नहीं किया जाता है. इससे पहले, इस सिद्धांत को रासायनिक और जैविक हथियारों के लिए लागू किया गया था. चीन ने नो फर्स्ट यूज़ नीति १९६४ में ही घोषित कर दी थी. भारत ने पोखरण-२ के बाद किया. पाकिस्तान, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस वगैरह का कहना है कि कि वे परमाणु हथियारों का प्रयोग किसी भी प्रकार के आक्रमण के खिलाफ करेंगे. ऐतिहासिक रूप से नाटो देश यह मानते रहे हैं कि सोवियत आक्रमण को हराने के लिए परमाणु हथियारों के उपयोग की आवश्यकता होगी क्योंकि पारम्परिक हथियारों में सोवियत बहुत आगे था. सोवियत विघटन के बाद १९९९ में १६वें नाटो शिखर सम्मेलन में जर्मनी ने नो फर्स्ट यूज का प्रस्ताव दिया, नाटो ने इसे अपनाने से मना कर दिया.

बिहार में एक कहावत है : सबसे बड़ा कौन? सबसे बड़ा नंगा. अपना एक गैर-ज़िम्मेद्दार टाइप इम्प्रैशन बनाने के बाद पाकिस्तान निरन्तर बेरहमी से भारत को आतंकवाद का निर्यात करता रहा है और भारत को पारम्परिक हथियारों के प्रयोग से रोकने में भी सफल रहा. पहली बार १९९८ में पाकिस्तानियों ने थोड़ा महसूस किया था कि भारत में नेतृत्व पाकिस्तान से ज्यादा क्रेजी हो सकता है, जब अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने. उनके शपथ ग्रहण के कुछ ही हफ्तों बाद तीन परीक्षणों ने पाकिस्तान को झकझोर दिया. लेकिन जब दो दिन बाद और दो परीक्षण हुए तो पाकिस्तान को मिर्गी का दौड़ा आ गया. पहली बार, जो पाकिस्तान “बने रहो पगला, डरा रहे अगला” का नाटक कर रहा था, को लगा कि उधर वाला भी पगला सकता है. पाकिस्तान के पास अपनी परमाणु क्षमता को प्रदर्शित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. फिर वाजपेयी जी ने पंजाब में एक सार्वजनिक रैली में एक टिप्पणी की: पाकिस्तान क्या सोचता है कि भारत जवाबी कार्रवाई से पहले परमाणु हथियारों का उपयोग करने के लिए उनका इंतजार करेगा? लेकिन वाजपेयी जी ने नवाज को फालतू भाव देकर और बस कूटनीति प्रारंभ कर अपनी धार स्वयं ही भोथी कर ली. कारगिल संघर्ष के दौरान सेना को एल.ओ.सी. का उल्लंघन नहीं करने के उनके सख्त निर्देश ने पाकिस्तान को आश्वस्त कर दिया कि पकिस्तान के मामले में वाजपेयी जी अपने पूर्ववर्तियों से अलग नहीं हैं. फिर जब 2002 में संसद पर हमले के बाद सेना के जुटान का आदेश देने के बावजूद वाजपेयी जी ने आतंक पर हमले का विकल्प नहीं चुना तो पाकिस्तान कन्फर्म हो गया वाजपेयी जी भी “बने रहो पगला, डरा रहे अगला” नाटक से डर गए हैं.

२०१४ में जब मोदी जी प्रधान मंत्री बने, तो पाकिस्तान को पता नहीं था कि इनके बारे में क्या विचार बनाया जाए. लगभग ढाई साल तक मोदी जी ने पाकिस्तान को बातचीत में शामिल करने के लिए कम से कम पांच प्रयास किए. उनकी आतुरता ने पाकिस्तान को पुनः आश्वस्त कर दिया कि वह पाकिस्तान द्वारा निर्धारित रेखाओं के अन्दर ही रहेंगे. सितंबर २०१६ में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पहली बार पाकिस्तान को थोड़ी चिंता हुई लेकिन उसे एक छोटी स्ट्राइक मानकर पाकिस्तान फिर से निश्चिन्त हो गया.

बालाकोट हवाई हमला कुछ और ही है. यह “बने रहो पगला, डरा रहे अगला” वाले पाकिस्तान के लिए अब तक की सबसे जोरदार चुनौती है. पाकिस्तान का जवाबी हमला इसी नाटक का एक अंक था और अप्रत्याशित नहीं था. आतंकवादी मरे या नहीं मरे, मरे तो कितने मरे, सबूत नहीं है या सबूत है, ये सब विवादित हैं लेकिन निर्विवाद तथ्य यह है कि पुरानी लाल रेखाएं अब मौजूद नहीं हैं. हालांकि पाकिस्तान अभी भी नाटक चालू रक्खेगा लेकिन पकिस्तान के अन्दर गंभीर खिलाड़ी जान चुके हैं कि खेल के नियम बदल गए हैं. लब्बोलुआब यह है कि भारत ने पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि अगर पाकिस्तान को लगता है कि वह पागल का नाटक करके भारत को डरा सकता है, तो भारत उनसे ज्यादा पागलपन दिखा सकता है. दूसरे शब्दों में, “बने रहो पगला, डरा रहे अगला” नाटक का पटाक्षेप कर दिया भारत ने. भारत ने न केवल एल.ओ.सी. पार किया बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा भी पार की और पाकिस्तान में प्रॉपर बम गिराया. पाकिस्तान के अंदर जो प्रतिक्रिया देखने की जरूरत है वह सड़क पर या उनके संसद जैसे मंचों पर नहीं है. प्रतिक्रिया उनलोगों की मैटर करती है जो वहाँ वास्तव में शक्तिशाली हैं. वे शक्तिशाली जो परमाणु प्रलय की चेतावनी दे रहे थे, अचानक सुर बदल रहे हैं. उनके सेना प्रवक्ता क्षेत्रीय शांति और आर्थिक समृद्धि की बात कर रहे हैं. पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बता रहा है कि भारतीय नौसेना कराची की ओर बढ़ रही थे, भारतीय वायु सेना आपत्तिजनक मोड में थी, भारतीय थलसेना की इकाइयां लामबंद हो रही थीं और भारत मिसाइल हमले शुरू करने की ओर अग्रसर हो रहा था,. यह एक एक स्पष्ट संकेत है कि उन्हें लगा कि और ज्यादा मुसीबत आ सकती है.

पाकिस्तान को विश्वास है कि वाजपेयी जी भारतीय व्यापार लॉबी और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के दबाव के कारण पीछे हट गए थे. पाकिस्तान अभी भी यह मानता हैं कि भारत पाकिस्तान से अधिक समृद्ध है, अधिक विकसित है, भारत के पास खोने के लिए बहुत कुछ है और इसलिए भारत हमेशा युद्ध अवॉयड करेगा. यह वैसी ही वीरतापूर्ण धारणा है जैसी कि कुछ भारतवासियों ने बना रक्खी है कि पाकिस्तान अपनी खराब आर्थिक स्थिति के कारण अब आतंकवाद पर पैसा खर्च नहीं करेगा. लेकिन अब यह स्पष्ट हो चुका है कि न तो भारत की समृद्धि पाकिस्तान से युद्ध रोकने का कारण बन सकती है और न ही पाकिस्तान का दिवालियापन पाकिस्तान की जिहादी लत को रोकने के लिए पर्याप्त है.

तर्कसंगतता एक व्यक्तिपरक चीज है, तर्कहीनता एक खेल है जिसे दो तर्कहीन खेल सकते हैं. पाकिस्तान के लिए तर्कहीन खेलना पूरी तरह तर्कसंगत था लेकिन भारत द्वारा पाकिस्तान की तर्कहीनता का मुकाबला तर्कसंगत रूप से करना काफी तर्कहीन था. पहले भी कई विश्लेषक और रणनीतिकार पाकिस्तान के नाटक से न डरने की वकालत करते रहे थे लेकिन भारतीय नेता पाकिस्तानी प्लेबुक के अनुसार खेलना पसंद करते थे. बालाकोट एपिसोड ने केवल भारत का ही नहीं, बल्कि शायद पाकिस्तान का भी प्लेबुक बदल दिया है.

पाकिस्तान आगामी आम चुनावों में मोदी की हार के लिए अल्ला ताला से दुआएं मांग रहा है. हो सकता है कि बीजेपी हार भी जाए लेकिन जो भी सरकार बनेगी उसको इस बेंचमार्क के साथ मापा जाएगा. भविष्य की सरकारों को पाकिस्तान से आतंकवाद के अपमानजनक कृत्य से निपटने के लिए मोदी द्वारा निर्धारित आधार रेखा तक रहना होगा. आम जनता का सार्वजानिक दबाव और राजनीतिक मजबूरियां भविष्य की सरकारों को भी पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकवाद पर स्ट्राइक करने के लिए मजबूर कर सकती हैं.

यह सब निश्चित रूप से हैशटैग ब्रिगेड (#SayNoToWar और #GivePeaceaChance टाइप) के लिए बेहद परेशान करने वाला है जो भारत में पाकिस्तान के अधिवक्ताओं, माफी देने वालों और प्रशंसको के रूप में कार्य करते हैं. पिछले ३० वर्षों से भारत वार को नो कर रहा था, पीस को चांस दे रहा था लेकिन न तो विषम युद्ध रुका और न ही शांति आई. क्या पाकिस्तान के लिए बल्लेबाजी करने वाले तथाकथित शांति के कबूतर पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों में जाकर अपने शांति उपदेशों का प्रचार करेंगे? अपने पाकिस्तानी बुद्धिजीवी मित्रों को आतंकवाद निर्यात रोकने हेतु पाकिस्तान में शांति उपदेशों का प्रचार करने को प्रेरित करेंगे? खैर, ऐसा लगता है कि इस प्रकार का शान्तिसंदेश अब विश्वसनीय नहीं है और पाठ्यक्रम से बाहर जा रहा है.

आप पूर्णरूप से या आंशिक रूप से असहमत या सहमत हो सकते हैं क्योंकि तर्कसंगतता एवं तर्कहीनता दोनों ही व्यक्तिपरक होती हैं. सम्पूर्ण या निराकार कुछ नहीं होता.

-रामचन्द्र
घर गनौल ससुराल मंझौल

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