भैया जब जानते हो कि टूटा हुआ जुड़ता नहीं है तो फिर तोड़ने का काम ही क्यों करते हो ?

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न उधी का लेना न माधो का देना  (मतलब होता है कोई सबंध न रखना)

उधी अर्थात वो जो हमारा ऋणी होता है जिससे हमें लेना होता है तथा माधो अर्थात वो जिसके हम ऋणी होते हैं जिसको हमें देना होता है दोनों ओर से लेने देने का व्यवहार समाप्त होने पर व्यक्त तटस्थ हो जाता है। उसे न तो किसी से कुछ लेने की आवश्यकता पड़ती है न किसी को कुछ देने की आवश्यकता पड़ती है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।

कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता, क्योंकि अकेला रहना एक बहुत बड़ी साधना है। जो लोग समाज या परिवार में रहते हैं वे इसलिए रहते हैं कि उन्हें एक दूसरे की सहायता की आवश्यकता होती है। परिवार का अर्थ ही है माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन का समूह। इन्हींसे परिवार बनता है और कई परिवारों के मेल से समाज बनता है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से शहर, राज्य और राष्ट्र बनता है।इसलिए जो भी व्यक्ति समाज में रहता है, वह एक-दूसरे से जुड़ा रहता है। मित्रता मनुष्य के जीवन की एक अद्भृत उपलब्धि है। जिस व्यक्ति के मित्रों की जितनी अधिक संख्या होती है, वह उतना बड़ा आदमी होता है। मनुष्य धन से बड़ा नहीं होता, मित्रों और शुभचिंतकों से बड़ा होता है।

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ऊपर लिखे दो पैराग्राफ हमलोग  बचपन से पढ़ते आये हैं अब जमाना आया है फेसबुक , व्हाट्सप्प का लोग पहले से ज्यादा कनेक्ट और एक्टिव हुए हैं पहले दोस्त सिर्फ मोहल्ले समाज तक सीमित था – अब GLOBALLY ACROSS लोग जुड़ने लगे ..ज्यादा से ज्यादा Participation even with अनजान लोग & ग्रुप से भी होने लगा है

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फिर उसी दुनिया में क्रांति आयी हुई है  ” अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की , अपने पोलिटिकल व्यू पर जमकर चर्चा करने की ”

अब क्या हो रहा है ..न कोई उधि हैं न कोई माधो कोई सम्बन्ध नहीं है अथवा नहीं रखना है तो दरकिनार करके आगे बढिये , लेकिन आपस में एक दूसरे को निचा दिखाने की कोशिश में सब लगे पड़े हैं ..सुबह शाम जान बूझकर ऐसे पोस्ट भेजना जिससे कोई दूसरा आदमी भड़क जाए ..वो भड़क के तिलमिलाए , छटपटाये और सामने वाले मनुष्य ( जो स्वभाव से अभी भी सामाजिक प्राणी ही है ) को आनंद की अनुभूति होती है . जवाब में दूसरा सामाजिक प्राणी भी वही हरकत करता है और शायद उसे भी आनंद की प्राप्ति होती है ।भडकने वाले और भड़काने वाले दोनों अगर पढ़े लिखे हो तो और भी दुःख होता है ..आखिर शिक्षा का क्या फायदा ..क्या उन्हें पता नहीं चलता की सामने से जान बूझकर आपको भड़काया जा रहा है ? 

आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? जाने अनजाने या तो आप अपने मन को सुबह शाम खट्टा जानबूझकर करते है या दूसरे को दुःख पहुंचाते हैं …हासिल क्या हो रहा ? – जरा सोचिये !! 

अब बात करते हैं समाज के प्रबुद्ध वर्ग की जिन्हे अपने देश के विकास , समाज के उत्थान की बहुत चिंता होती है ..ये पुराने जमाने के मोहल्ले , गाँव के वही बाबा लोग जैसे होते हैं जो सुबह घर से एक कप चाय पीकर मोहल्ले के नुक्कड़ पर चाय पीने बैठ गए हैं , एक ही पेपर का अलग अलग पेज सब आपस में बांटकर पढ़ लिए और जोर जोर से पुरे देश की हर समस्या पर अपनी बात रखते थे . घडी पर नजर पड़ते ही तैयार होने घर की तरफ भागते थे ..शाम को थके हारे घर आये , फिर चाय पीने बैठे और फिर वही सब चर्चा …हालाँकि उस चर्चा में एक आत्मबोध होता था .लोग इसी बहाने एक दूसरे से मिलते थे ..हाल चाल पूछते थे ..सामाजिकता झलकती थी मगर इस सोशल मीडिया में अगर मनुष्य का वश चले तो तोप से उड़ाकर भी सही , लेकिन अपनी बात साबित करके रहेंगे !

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अब लोगो को इस काम में मजा आने लगा है ..उनके व्यक्तिगत व्यवहार की विशेष जानकारी तो नहीं ..लेकिन उनके पोस्ट शेयरिंग से उनके चरित्र का बोध होने लगा है . कोई भी न्यूट्रल आदमी पोस्ट शेयरिंग के पैटर्न को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं की इनका झुकाव किधर है ? वे मुश्किल से कोई बात समझदारी की करते नजर आएंग लेकिन जवाब देने में सबसे आगे …मुझे नहीं लगता की वो खुद कभी आत्मचिंतन करते भी होंगे ..आखिर उनको हासिल क्या हो रहा ?

न ही राहुल  जी और न ही मोदी जी हमारे घर को चलाते हैं और न ही हमारे शरीर में बह रहे रक्त प्रवाह को संचालित करते हैं . न ही हम किसी पार्टी का प्रवक्ता हैं जिसे कुछ भी हो जाये अपने ही पार्टी को सही बोलना है तो हम कर क्या रहे हैं ..भाई जी , आँखे खोलिये , थोड़ा मुस्कुराईये ..जिस बात से किसी व्यक्ति , विशेष , जाती धर्म आदि को दुःख पहुँच सकता हो उसे करने से बचिए … एक व्यक्ति नादानी में अगर कुछ वैसा लिख भी देता है तो उसपर आप अपनी सूझ बुझ का परिचय देते हुए अपनी प्रतिक्रिया मत दिखाईये .

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अगर कोई एक व्यक्ति विशेष बार बार एक ही तरह का पोस्ट कर रहे हों तो उसपर अपनी प्रतिक्रिया करनी बंद कर दीजिये ..किसी के कुछ भी उल्टा – सीधा पोस्ट कर देने से देश तो नहीं न बदल जायेगा ..छोड़ दीजिये ऐसे मनुष्य को उनके अपने हाल पर ..एक दिन , दो दिन …कुछ दिन तक उनको कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलेगी तो वो भी बोर हो जायेंगे और शायद समझ पाए की तोड़ो नहीं जोड़ो पर ही एक ऊंगलीमाल डाकू का हृदय परिवर्तन हो गया था !

बुद्ध ने जब उस से कहा क्यों भाई सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड लाओगे | ऊंगलीमाल के लिए यह काम कोनसा मुश्किल था वह भाग कर गया और चार पत्ते तोड़ लाया तो बुद्ध ने उस से कहा कि क्या अब तुम इन्हें जहाँ से तोड़ कर लाये हो क्या उसी जगह इन्हें वापिस लगा सकते हो इस पर डाकू ने कहा यह तो संभव ही नहीं है | बुद्ध ने तब कहा था ” भैया जब जानते हो कि टूटा हुआ जुड़ता नहीं है तो फिर तोड़ने का काम ही क्यों करते हो ,बुद्ध की ये बात सुनते ही उसकी बोध हो गया और वह ये गलत धंधा छोड़ कर बुद्ध की शरण में आ गया |

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बांकी तो जो है सो हईये हैं !!

विकास रंजन

Vikash Ranjan

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